मैं तुम्हें फिर मिलूंगी...!!
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी....
जहां कोई नहीं मिलता किसी को ।।
दुनियां के उस पार
टिमटिमाते तारो के पास
समुंदर की लहरों के साथ
पहली ओस की बूंद के साथ
सूरज की पहली किरण के साथ
बारिश की पहली बूंदों में
चांद की शीतलता में
किसी गहरी खामोशी के सन्नाटे में
किसी कोरे कागज पर पड़ी स्याही में
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी ।।
बताओ कहां मिलूं मैं तुम्हें...??
जहां कोई किसी को ना मिला हो,
बताओ कोई ऐसी जगह....??
मैं मिलूंगी तुम्हें....
तुम्हारे मन के किसी अंधेरे कोने में
जहां तुमने छुपा लिया है खुद को
रोशनी का कोई सिरा पकड़ कर
मैं मिलने आऊंगी वहां
जहां फैला हो गहरा तिमिर
मुझे पता है वहां हर कोई नहीं पहुंच पाता
गहराईयों में कोई जाता ही कहां है
सब जाते हैं उजाले में, रोशनी में
पर मैं मिलूंगी तुम्हें तुम्हारे अंधेरों में।।
आखिर ढूंढ ही लिया मैंने
मिलने का वो रास्ता
जो जाता कहीं नहीं
लेकिन फिर भी पहुंचाता है
रूह से रूह को
अंधेरे से उजालों को
रूबरू करवाता है ।।
मैं मिलूंगी तुम्हें तुम्हारे ही भीतर
तुम स्वयं को पहचान कर रखना।।
प्रतियोगिता - 30 मार्च 2022
लेखिका - कंचन सिंगला
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Seema Priyadarshini sahay
01-Apr-2022 09:40 PM
बहुत खूबसूरत
Reply
Shrishti pandey
31-Mar-2022 04:52 PM
Nice one
Reply
Anam ansari
31-Mar-2022 01:55 PM
Nice🙂
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